तानसेन समारोह के बारे में

तानसेन समारोह के बारे में

संगीत की उत्‍कृष्‍टता की शताब्‍दी का उत्‍सव विश्‍व संगीत समागम "तानसेन समारोह"

ग्वालियर की शास्त्र सम्मत संगीतमयी आबो-हवा में देश के संगीत मनीषी श्रद्धा और समर्पण भाव से जब संगीत की साधना करते हुये आत्मा को अनंत आनन्द में तल्लीन कर देते हैं तब ‘‘तानसेन संगीत समारोह’’ जैसे अनुष्ठान की रचना होती है। ऐसे अनुष्ठान देख भारतीय संस्कृति मुस्कुरा उठती है और अपने सच्चे पहरेदारों पर नाज करती है।

    तानसेन समारोह अब तक

  • ग्वालियर में प्रतिवर्ष मनाये जाने वाले तानसेन संगीत समारोह का यह 100वां वर्ष है। एक शताब्दी तक इसकी निरन्तरता और गरिमा दोनों को बरकरार रखना किसी मिसाल से कम नहीं है। मध्यप्रदेश शासन की ओर से संगीत सम्राट तानसेन के प्रति इस समारोह का आयोजन श्रद्धा सुमन है। इन 100 वर्षों में इस समारोह ने अनेक उतार-चढ़ाव देखे हैं, अनेक विपदाओं को पार किया है और आज सम्पूर्ण देश में यह समारोह एक अद्वितीय स्थान रखता है। शायद ही कोई अपने समय का शीर्षस्थ, अग्रणी, श्रेष्ठ और प्रतिभाशाली संगीतकार हो जिसने इस समारोह में शिरकत न की हो या शिरकत करना न चाही हो। 100 वर्षों तक सफल आयोजन का श्रेय भी यहां शिरकत करने वाले संगीत मनीषियों को ही जाता है, जिन्होंने अनूठे कला बोध, जीवन पर्यन्त के सृजन और साधना से तानसेन समारोह को अविस्मरणीय आभा प्रदान की है।

  • संगीत सम्राट तानसेन भारतीय संगीत का वह चमकदार तारा है जिसने संगीत की पीढ़ियों तक को रोशन किया है। एक संस्कृत ग्रंथ ‘‘वीर भानूदय काव्यम्’में तानसेन के बारे में लिखा गया है- ‘‘भूतो भविष्यति वर्तमानों न तानसेन सदृश धरण्याम’ अर्थात तानसेन जैसा महान संगीतज्ञ न तो पहले हुआ और न वर्तमान में है, और न भविष्य में होने की संभावना है। ग्वालियर के पास बेहट गांव में मकरन्द पांडे के घर में तानसेन का जन्म हुआ था।

  • ‘‘तानसेन संगीत समारोह’ को केवल एक संगीत समारोह की दृष्टि से देखना इसके वैभव के साथ नाइंसाफी होगी। जबकि, यह संगीत का ऐसा अनुष्ठान है जिसकी ढ्योड़ी पर सिर झुकाने का अवसर कलाकारों, रसिकों के लिये पुण्य फल है। इसे संगीत का महाकुम्भ कहने में कोई अतिशयोक्ति नहीं है। इस समारोह के प्रति आस्था और बाबा तानसेन के प्रति श्रद्धा का इससे बड़ा उदाहरण कोई नहीं हो सकता कि समारोह के प्रारंभिक वर्षों में जब आवागमन की सुविधाएं आज के समान नहीं थी तब कलाकार कई बार अपना सामान सिर पर लादकर पैदल चलकर तानसेन समाधि तक पहुंचते थे।

  • स्वाधीनता पश्चात् इस समारोह ने राष्ट्रीय सांस्कृतिक पुनर्जागरण की एक महत्वपूर्ण कड़ी के रूप में भूमिका निभाई और भारतीय संगीत को लोकप्रिय तथा जनसुलभ बनाने की दिशा में भागीदारी की। एक स्थानीय त्योहार से राष्ट्रीय संगीत समारोह बनने तक की यह यात्रा बड़ी दिलचस्प रही है। तत्कालीन केन्द्रीय सूचना मंत्री डॉ. बालकृष्ण केसकर एवं आकाशवाणी में हिन्दुस्तानी संगीत के सलाहकार डॉ. जयदेव सिंह ने उल्लेखनीय भूमिका और उन महानुभावों के प्रयास से ही समारोह को राष्ट्रीय ख्याति और प्रतिष्ठा मिली।

  • मध्यप्रदेश शासन द्वारा गठित एक केन्द्रीय समिति के प्रयासों से इसके स्तर को निरन्तर विकसित किये जाने पर विचार किया गया, फलस्वरूप इसकी संगीत-सुगंध सारे देश में परिव्याप्त होने लगी। इस समारोह को शीर्ष पर ले जाने में संगीत विद्यालयों का सहयोग भी भुलाया नहीं जा सकता। संगीत शिक्षा के क्षेत्र में ग्वालियर का विशिष्‍ट महत्व है। ग्वालियर गायिकी की प्रमुख कड़ी ध्रुपद का सामूहिक गायन समारोह की प्रत्येक सभा के प्रारंभ में इन्हीं विद्यालयों के विद्यार्थियों द्वारा किया जाता है। समारोह के दौरान आवश्‍यक संगीत साज एवं वादन के लिये सहयोगी कलाकार भी इन्हीं विद्यालयों द्वारा उपलब्ध कराये जाते हैं।

  • संगीत के इस अनुष्ठान में मध्यप्रदेश शासन, संस्कृति विभाग द्वारा दिया जाने वाला ‘‘तानसेन सम्मान’ उस सात्विक भाव को और भी अधिक गहरा कर देता है जो संगीत सम्राट तानसेन के प्रति है। तानसेन सम्मान की स्थापना 1980 में की गई थी। प्रारम्भ में सम्मान की राषि 5 हजार रुपये थी, जो 1986 में राशि बढ़ाकर 50 हजार रुपये कर दी गई। 1990 में इसे पुनः बढ़ाकर एक लाख रुपये तथा प्रशस्ति पट्टिका भेंट की जाती थी। वर्तमान में यह राशि 5 लाख रुपये कर दी गई है। मध्यप्रदेश शासन का यह प्रयत्न है कि कलाओं के क्षेत्र में राष्ट्रीय स्तर पर श्रेष्ठ अवदान को समुचित रूप से रेखांकित किया जाये और कल्याणकारी राज्य के नागरिकों की ओर से उसे सम्मानित किया जाये।

  • तानसेन संगीत समारोह के शताब्दी उत्सव में मध्यप्रदेश शासन, संस्कृति विभाग का यह प्रयास है कि 100 वर्षों के समग्र अनुभवों, स्मृतियों एवं वैभव को आत्मसात करते हुये एक ऐसा अनुष्ठान रचा जाये जो मौजूदा समय के कलानुरागियों को भारतीय संस्कृति एवं संगीत के प्रति गहरी आस्था को प्रकट कर सके। संगीत का यह दिव्य समागम अपनी 100वीं सालगिरह पर कलाकारों और कलाप्रेमियों की स्मृतियों में धरोहर की तरह बस सके।