तानसेन समारोह के बारे में

तानसेन समारोह के बारे में

संगीत की उत्‍कृष्‍टता की शताब्‍दी का उत्‍सव विश्‍व संगीत समागम "तानसेन समारोह"

जबसे मानव सभ्यता के इतिहास ने आँखें खोली हैं तभी से संगीत का अस्तित्व है। मानव की सहज स्फूर्त कोमल भावनाओं की अभिव्यक्ति के अनेक रूपांकन प्रगट हुए जिनमें संगीत एक प्रमुख नाम है। ऐतिहासिक विकासक्रम की टेढ़ी-मेढ़ी राहों पर चलता "देशी संगीत" कब "मार्गी" बना यह निश्चित करना कठिन है। विश्व के प्राचीनतम तथा हमारी सांस्कृतिक अस्मिता के श्रेष्ठतम प्रतीक वेद ग्रंथों की ऋचाओं का उद्‌गाता- सामगान के सुमधुर प्रवाह से समस्त चराचर को आप्लावित करता आ रहा है, जिसकी आभा से समस्त विश्व आलोकित हुआ है, नतशिर हुआ है।

    तानसेन समारोह अब तक

  • हमारी इस सांस्कृतिक अस्मिता के मुक्तामणि संगीत की विशिष्टता इसी में निहित है कि यह हमें भौतिकता से आध्यात्म की ओर ले जाता है, आनंद से परमानंद की ओर ले जाता है। इस अनादि परम्परा के संवाहक हैं वे श्रेष्ठ कला तपस्वी जिन्होंने अपनी घोर साधना व तपस्या से इसे उत्तरोत्तर समृद्ध किया है। संगीत सम्राट तानसेन उस विशाल परम्परा के एक श्रेष्ठ उदाहरण हैं। लगभग 503 वर्ष पूर्व इस प्रदेश की माटी में जन्मा "तन्ना मिसर" अपने गुरू स्वामी हरिदास के ममत्वपूर्ण अनुशासन में एक हीरे सा परिष्कार पाकर धन्य हो गया, जिसकी आभा से तत्कालीन नरेश व सम्राट भी विस्मित हो उसे अपने दरबार की शोभा बढ़ाने का निवेदन करते। उनकी प्रतिभा से स्तम्भित बादशाह अकबर यह जानने को उत्सुक हुआ कि यदि तानसेन इतने श्रेष्ठ हैं तो उनके गुरू स्वामी हरिदास कैसे होंगे? और यह उत्सुकता उस बादशाह को भी खींच लाई वृंदावन की कुंज गलियों में, वह भी वेश बदलकर। आज के वैज्ञानिक युग में जहाँ संगीत के प्रभाव से पशु, पक्षी, वनस्पति, फसलों आदि पर भी असर होना सिद्ध हुआ है, तथा अनेक रोगों पर संगीतोपचार की चर्चा व प्रयोग हो रहे हैं वहाँ तानसेन की तान से 'घरा मेरु सब डोलहीं" यह मात्र अतिशयोक्ति है, यह कहते संकोच हो रहा है। इस गान महर्षि को श्रद्धांजलि, स्वरांजलि देने का यह 100 वां वर्ष है। इतनी सुदीर्घ परम्परा के उदाहरण बिरले ही हैं। मध्‍यप्रदेश संस्‍कृति विभाग ने इस परम्‍परा को उसके मूल रूप में ही सतत् रखा। वर्ष दर वर्ष इसकी लो‍कप्रियता को बढ़ाने के निरन्‍तर प्रयास होते रहे।

  • स्‍वतंत्रता पूर्व तानसेन समारोह उर्स के रूप में आयोजित हुआ करता था। तब संगीत के सम्राट की ग्‍वालियर स्थित समाधि पर सिर झुकाने अनेकानेक संगीतज्ञ और संगीतप्रेमी पहुंचते थे। जब आवागमन के साधन नहीं होते थे तो संगीतज्ञ सिर पर अपना सामान उठाये पैदल इस स्‍थान पर आते थे और इस ढ्योड़ी पर सिर झुकाकर अपने आप को सौभाग्‍यशाली मानते थे। संगीतज्ञों का यह भाव आज 100वर्ष बाद भी जारी है। संगीत जगत में शायद ही कोई संगीतज्ञ ऐसा होगा जिसने तानसेन समारोह में प्रस्‍तुति न दी हो या देनी न चाही हो।

  • स्वाधीनता पश्चात् इस समारोह ने राष्ट्रीय सांस्कृतिक पुनर्जागरण की एक महत्वपूर्ण कड़ी के रूप में भूमिका निभाई और भारतीय संगीत को लोकप्रिय तथा जनसुलभ बनाने की दिशा में भागीदारी की। एक स्थानीय त्योहार से राष्ट्रीय संगीत समारोह बनने तक की यह यात्रा बड़ी दिलचस्प रही है। तत्कालीन केन्द्रीय सूचना मंत्री डॉ. बालकृष्ण केसकर एवं आकाशवाणी में हिन्दुस्तानी संगीत के सलाहकार डॉ. जयदेव सिंह ने उल्लेखनीय भूमिका और उन महानुभावों के प्रयास से ही समारोह को राष्ट्रीय ख्याति और प्रतिष्ठा मिली।

  • मध्यप्रदेश शासन द्वारा गठित एक केन्द्रीय समिति के प्रयासों से इसके स्तर को निरन्तर विकसित किये जाने पर विचार किया गया, फलस्वरूप इसकी संगीत-सुगंध सारे देश में परिव्याप्त होने लगी। इस समारोह को शीर्ष पर ले जाने में संगीत विद्यालयों का सहयोग भी भुलाया नहीं जा सकता। संगीत शिक्षा के क्षेत्र में ग्वालियर का विशिष्‍ट महत्व है। ग्वालियर गायिकी की प्रमुख कड़ी ध्रुपद का सामूहिक गायन समारोह की प्रत्येक सभा के प्रारंभ में इन्हीं विद्यालयों के विद्यार्थियों द्वारा किया जाता है। समारोह के दौरान आवश्‍यक संगीत साज एवं वादन के लिये सहयोगी कलाकार भी इन्हीं विद्यालयों द्वारा उपलब्ध कराये जाते हैं।

  • संगीत के इस अनुष्ठान में मध्यप्रदेश शासन, संस्कृति विभाग द्वारा दिया जाने वाला ‘‘तानसेन सम्मान’ उस सात्विक भाव को और भी अधिक गहरा कर देता है जो संगीत सम्राट तानसेन के प्रति है। तानसेन सम्मान की स्थापना 1980 में की गई थी। प्रारम्भ में सम्मान की राषि 5 हजार रुपये थी, जो 1986 में राशि बढ़ाकर 50 हजार रुपये कर दी गई। 1990 में इसे पुनः बढ़ाकर एक लाख रुपये तथा प्रशस्ति पट्टिका भेंट की जाती थी। वर्तमान में यह राशि 5 लाख रुपये कर दी गई है। मध्यप्रदेश शासन का यह प्रयत्न है कि कलाओं के क्षेत्र में राष्ट्रीय स्तर पर श्रेष्ठ अवदान को समुचित रूप से रेखांकित किया जाये और कल्याणकारी राज्य के नागरिकों की ओर से उसे सम्मानित किया जाये।

  • तानसेन संगीत समारोह के शताब्दी उत्सव में मध्यप्रदेश शासन, संस्कृति विभाग का यह प्रयास है कि 100 वर्षों के समग्र अनुभवों, स्मृतियों एवं वैभव को आत्मसात करते हुये एक ऐसा अनुष्ठान रचा जाये जो मौजूदा समय के कलानुरागियों को भारतीय संस्कृति एवं संगीत के प्रति गहरी आस्था को प्रकट कर सके। संगीत का यह दिव्य समागम अपनी 100वीं सालगिरह पर कलाकारों और कलाप्रेमियों की स्मृतियों में धरोहर की तरह बस सके।